India – Farmers and Workers Rally – Tribute to Major Workforce

October 7, 2018

Indian Farmers & Workers Plight (Hindi)

India – Farmers and Workers Rally

Padmini Arhant

This video is about Indian Farmers & Workers Plight. The farmers world over are confronted with powerful corporate and political complicity in depriving farmers due recognition and revenue for their tremendous contribution to humanity and life.

The outrageous response from governments at corporations behest for example Monsanto – manufacturer as well as distributor of GMO and chemical pesticide aimed at killing pests on the fields instead claiming farmers lives and livelihoods in many parts of the world. The lack of accountability in this regard are responsible for distress in agriculture economy. The multinational corporations wielding power over governments in agro-based economies are legitimate concerns considering the exploitation of farmers and excoriation of earth deriving mega profits at farmers and world population expense only to benefit the 1% reining control over any industry.

The agriculture in particular targeting farmers leave them with no choice except for tragic ending with many committing suicide and treated as mere statistics by governments such as in India.

Indian governments regardless of political parties in power have granted unfettered access with no checks and balances to Indian merchants and multinational corporations (MNC) like Monsanto and several others to prey on farmers under Foreign Direct Investments in India.

Indian farmers have been completely neglected by the governments in the state and national level. To make matters worse both BJP under Prime Minister Narendra Modi and previously Sonia Gandhi led Congress have systematically seized land from farmers to aid their political donors and campaign financiers – i.e. the industrialists in India and foreign companies eyeing on coal and minerals mining industry resulting in explosive and embarrassing political scandals that cost their re-election.

Indian farmers grievance was taken to streets following prolonged struggles with no positive actions or policies from governments alternating power in New Delhi and States nationwide. The latest reaction from PM Narendra Modi government barring farmers entry to the capital – New Delhi deploying brute force and aggressive tactics witnessed in New Delhi on Oct 2nd, 2018 is reprehensible.

Farmers worldwide are the providers of food as they toil in the fields weathering harsh conditions to feed the global population. The governments could no longer ignore farmers problems as that would lead to serious catastrophe for life in general.

Farmers and similarly the labor force enabling businesses and industries to exist and thrive deserve to be heard and their issues resolved peacefully for global sustenance.

Any government exercising brazen means to quell farmers and workers peaceful and non-violent dissent are declaring the system is not democratic. Those who rely on violence to resist reasonable demands from farmers and workers are creating huge barriers in dialogue and reconciliation that could ultimately eject them from power.

Indian political parties at the center and states are hurting themselves in violating farmers and workers constitutional rights to meet with government to alleviate chronic crises. The government has the legislative and constitutional duty per oath to serve all citizens including farmers and workers rather than entirely spending their term in office to enhance industrialists and celebrities interests in society. 

Padmini Arhant

Author & Presenter PadminiArhant.com

Prakrithi.PadminiArhant.com

भारत – किसान और मज़दूर रैली

पद्मिनी अर्हन्त

आज का विषय है – भारत के सबसे मुख्य जन गण – कृषि और मज़दूर – दोनों देश के भोज उठाने वाले जिससे देश वासी और उद्योग क्षेत्र जीवित हैं |

राजनीति के सभी दल अब तक अगर कृषि अर्थव्यवस्था यानि एग्रीकल्चर इकॉनमी (Agriculture Economy) को जब आप उद्योगपतियों के साथ किसानों की तुलना करते हैं तो वे किसानों के प्रति सौतेला व्यवहार करते आये हैं | जिससे कोई पक्ष असहमत नहीं हो सकते | भारत के ७१ वर्ष की नाम के वास्ते स्वंतत्रता में, राजनीति यानी कोई भी सरकार को लिया जाये, वे सभी किसान और मज़दूरों के साथ बुरा सुलूक करते आये हैं | उनकी समस्या हल करने के बदले उन्हें उपेक्षा किये जैसे देश के लिए वे उपयोग नहीं हो, जो वास्तव से विपरीत है |

किसानों की संकट दूर करने के बजाय, उनके दुःख बढ़ादिए| पहले किसानों से उनके खेती ज़मीन छीनकर उद्योगपतियों को सस्ते में सौंपदिये ताकि उद्योग पति उससे माला माल हो सके और उनमें से कुछ पैसे उद्योगपति चुनाव में राजनीति के उम्मीदवार पे खर्च करते हैं ताकि उन्हें बाद में उनकी काम आ जाये |

दूसरी बात किसानों के क़र्ज़ की व्यवस्था नहीं की गयी | इसके कारण देश के हर एक कोने से किसान अपने क़र्ज़ में डूबे हुऐ, आत्म हत्या कर बैठे हैं, जिसके जिम्मेदार राजनीति के केंद्रीय, राज्य सरकार और विपक्ष हैं | यही बात जब उद्योगपति की आती है, तब राजनीती उनकेलिये हाथ जोड़कर उनकी सेवा में लगे रहते हैं | यहां तक कि, कई उद्योगपति जिनका गहरा सम्बन्ध पूरे राजनीत्ति यानी सभी दल से है, उन्हें देश से फरार होने देते हैं, देश को करोड़ों में नुक्सान पहुंचाकर यह उद्योगपति विदेशों में ऐश कर रहे हैं |

तीसरी बात किसानों को फसल के लिए जो दाम देना चाहिये, वो नहीं मिलता | उस वजय से किसानों को अपनी और से क़र्ज़ उठाना पड़ता है खेती बाड़ी के लिए और खेती से जुड़े हुऐ काम और साधन को भी मिलाकर किसानों को पैसों की बंदोबस्त करना पड़ता है, हालां की ऐसी समस्यावों के लिए देश में ग्रामीन बैंक होना चाहिये या देश के जितने भी बैंक हैं, उन्हें कृषि कार्य के लिए कम ब्याज में किसानों कि मदत के लिए अलग प्रबंध होने से किसान की संकट कम होगी |

ऐसे कई मुद्दे को लेकर किसान बिलकुल अकेले होगये हैं, जब की सर्कार को कृषि उद्पादन को बढ़ाने में और किसानों की सहायता के लिए कई प्रकार के योजनाएं और कार्यक्रम की आवश्यकता है | लगता है किसान जिस स्वामीनाथन रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, उस मैं किसानों की हित में निर्णय किया हुआ कई विषय है जिसे किसान चाहते हैं की वो सब लागू हो |

उसके पश्चात, किसानों की तत्कालीन मांगें जितने भी वो वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुऐ सरकार के सामने लाये हैं जो यहाँ पर प्रस्तुत है, वो सब तुरंत सम्मान करनी चाहिए ताकि देश की अनाज और धान्यबीज वगैरा की उद्पादन बढ़ सके और किसानों को भी राहत मिले |

देश के सभी किसानों के कर्ज माफ़ हो | किसानों को बिजली मुफ्त दी जाए | कृषि यंत्रों को जीएसटी में छूट दी जाए | ६० वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को पेंशन दी जाए | प्रधानमंत्री बीमा योजना में बदलाव किया जाए | किसानों को मनरेगा से जोड़ा जाए | स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की जाए |

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार – फसल उत्पादन मूल्य से ५०% ज़्यादा दाम किसानों को मिले | अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाएं | किसानों की मदद के लिए गावं ज्ञान केंद्र बनाया जाए | महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाएं | किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिले |

यह रही किसानों की और से निवेदन सर्कार की तरफ जिसके बदले उन पर पानी के गोले, आंसू गैस और लाठी बरसाए गए और वो भी महात्मा गाँधी के १५० साल गिरा पर, देश को याद दिलाने कि जिन्हें भारत बापू के नाम से जानते हैं और जो अहिंसा के प्रथम अन्वेषक (Pioneer) रहे, उनके जनम दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्कार किसानों पर आक्रमण किए जो सबसे बड़ी दुर्भाग्य है, देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे राजनति के लिए अपमानित है |

जो उद्योगपति पूरे देश कि तिजोरी साफ़ करके विदेश में मज़े से घूम रहे हैं, उन्हें भारत लाकर उन पर कार्रवाई करने कि राजनीती के पक्ष और विपक्षों को कोई उत्सुकता नहीं हैं | शांतिपूर्वक रैली किए किसानों पर हिंसा जताने में कोई कसर नहीं छोड़े | यही हाल है भारत के गणतंत्र और लोकतंत्र का जहाँ गरीब किसान, मज़दूर, समाज में दबे हुऐ आबादी को उनकी आवाज़ पहुँचाने केलिए सड़क पर उतरना पड़ता है | उसके बाद उनके साथ हिंसक ज़रिये उनहैं बिखेरा जाता है | यह कहकर कि वे क़ानून और नियम तोड़े जो हर शांति अहिंसा आंदोलन के बारे में कहा जाता है | जो भी हिंसा तत्त्व शामिल होते हैं ऐसे रैली में, उनके पीछे राजनीती का हाथ होता है और आरोप लगाते हैं अहिंसक भाग लेनेवालों के ऊपर ताकि आम जनता संचार के धारणा से परे रहें |

रहा सवाल मज़दूरों का, उनकी भी हालत किसानों जैसे है | उनके न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wage) को महंगाई के हिसाब से बढ़ाना चाहिये ताकि यह समुदाय जो भारी संख्या में है वे अपना गुज़ारा कर सके | उसके अलावा मज़दूर और उनके परिवार को मुफ्त चिकित्सा यानी इलाज दिलाना सरकार का कर्त्तव्य है क्योंकि श्रमिक इकॉनमी के पहिये होते हैं जिनके बगैर कई कारोबार चल नहीं सकते | अर्थव्यवस्था के हर एक क्षेत्र में मज़दूर चक्र बनकर उस व्यापार को उठकर चलने पर सहयोग देते हैं | ऐसे होने के नाते मज़दूरों कि आम और मुख्य सुविधाएँ उन्हें प्राप्त होनी चाहिये | सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि वे उद्योगपतियों पर भी यह लागू करें कि मज़दूर और उनके परिवार को मेडिकल और अस्पताल जैसे ज़रूरतें पूरी करें | मज़दूर के बच्चों को भी मुफ्त शिक्षा मिले ताकि वे इकॉनमी में उत्पादक कार्य बल बन सके |

मुझे यह भी ज्ञात है कि यह सुझाव को लेकर, राजनीति और समाज के कुछ सदस्य मुझ पर कम्युनिस्ट का नाम देंगे | समझने वाली बात यह है कि, जब राजनीति उद्योगपति और मनोरंजन क्षेत्र से जुड़े जितने भी व्यक्ति हैं जो अपने हिस्से का टैक्स नहीं भरते, काला धन बटोरकर विदेशों में बेनामी खाते में जमा किए हुऐ हैं जो सरकार को अच्छी तरह पता है | उसके बाद भी उनके प्रति कोई कदम नहीं उठाते हैं | इसलिए राजनीती में केवल तीन वर्ग अपने आप को क़ानून और नियम से ऊपर मानते हैं | वो है – राजनीति, उद्योगपति और सेलिब्रिटी यानि सिनेमा के अभिनेता, अभिनेत्री और खेल खिलाडी जैसे क्रिकेट वगैरा के मशहूर लोग जिन्हें कर चोरी से लेकर ग़बन (embezzlement)यहाँ तक खून भी माफ़ है देश में, जिससे लोकतंत्र एक मज़ाक बना हुआ है | जो देश कि नुक्सान करते हैं, बैंकों से करोड़ों रुपैया लेकर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं, गैर कानूनी व्यापार उनका महत्व धन इकट्ठा करने का माध्यम होता है उन्हें खुली स्वतंत्र है कुछ भी करने कि और देश को बर्बाद करने कि मगर, आम नागरिक के मूल्य आवश्यकताएं उनकेलिये परेशानी बन जाती है |

इस रव्वैये को बदलना होगा | राजनीती समाज में भेद भाव करके साधारण लोगों के बीच दरार पैदा करते हैं जिससे वो चुनाव में फायदा उठा सकें | इनका निशाना चूत अछूत, दलित ब्राह्मण, हिन्दू मुस्लिम, आदमी औरत, अमीर गरीब करके देश कि आबादी को बटवारा करते हैं | यह नीति इन्होने फिरंगियों के आदेश निभाने के लिए निर्मित किए हैं |

आखरी में मैं यह कहना चाहती हूँ कि भारत के केंद्रीय और राज्य सरकार सभी सत्ता के मोह में अंग्रेज़ों को पीछे छोड़ दिए, जब उन्हें पीड़ित जनता को उत्तर देने की बारी आती है | मतलब लाठी, बन्दूक और बुरी तरह से घायल करने वाली स्नाइपर यानी निशानची का प्रयोग करके लोगों की मृत्यु के कारण भी बनते हैं | ऐसे करतूतों से वे स्वयं देश के दुश्मन बन जाते हैं | जब इस पर आलोचना किए जाने पर उनके कई परोक्षी (proxy), प्रतिपत्र और प्रतिनिधि द्वारा वार करते हैं प्रश्नों को टालने के लिए और सच को झुटलाने के लिए कई युद्ध-नीति (tactics) अपनाते हैं |

इस गंभीर परिस्थिति को सुलझाने के लिए सरकार और सभी पक्ष एवं विपक्ष को सुधरना बहुत ज़रूरी है | अगर उन्हें अपने मार्ग और हानिकारक विचार को छोड़ने की इच्छा नहीं और इसी प्रकार देश के प्रचंड बहुमत के साथ अन्याय करेंगे तो देशवासियों को नया राजनीतिक दल आयोजित करना होगा जो इस राजनीती के वातावरण पर
सकारात्मक परिवर्तन ला सके |

किसान जो निश्चित रूप से देश के अन्नदाता हैं और मज़दूर अर्थव्यवस्था के आधार हैं उनपर हो रहे हत्याचार को रोकना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य और धर्म है | जब भी किसी के साथ अनीति हो वो व्यवहार विष की तरह औरों पर फैलने में देर नहीं लगता | इसलिए भारत वासियों को सरकार के अप्राजातंत्रवादी (undemocratic) तरीकों को अहिंसक पूर्वक निंदा करनी चाहिये | अन्याय करने वाले से ज़्यादा अन्याय सहने वाले और उससे भी बढ़कर अन्याय होते हो उसे देखि अनदेखा करने वाले पाप और अपराध के सब बड़े भाग्यदार होते हैं |

मेरी आशा है की किसान, मज़दूर और देश के जितने भी लोग – मध्य और गरीब वर्ग जो देश के बिगड़ते हुऐ स्थिति से चिंतित हैं, उन्हें अपनी सारी कठिनता से समाधान मिले ताकि वे भारत की स्वतंत्र को पुनर्जीवित कर सके |

भारत के व्यथित आबादी को मेरी शुभ कामनाएं!

जय भारत!

धन्यवाद

पद्मिनी अर्हन्त
लेखिका एवं प्रस्तुतकर्ता पद्मिनीअर्हन्त.कॉम
प्रकृति.पद्मिनीअर्हन्त.कॉम