मृगतृष्णा – Mirage

April 2, 2015

 

लेखिका  –  पद्मिनी अरहंत  

नमस्ते! मैं पद्मिनी अरहंत – पद्मिनीअर्हन्त.कॉम कि लेखिका, अदाकार और प्रस्तुतकर्ता आपके सामने पेश करती हूँ वर्णन ‘मृगतृष्णा.’

इनसान भले ही आसमान की बुलंदियों को क्यों न चूलें – वो भी चमकते हुए सितारे बनकर,

अगर उनमे अपनी गलती मानने कि हिम्मत और ईमानदारी नहीं हैं, यह जानते हुए कि उनके लापरवाही कुछ लोगों कि तबाही का वजय हुआ है, कितनी आसानी से अपनि परेशानी दूर कर लेते हैं.

क्या वाकय यही होता है?

अमीर गरीब किस्सा – करे कोई भरे कोई!

ऐसे हस्तियों के मन की दुविधा पर एक झलक से उनकी पहचान नज़र आता है.

दौलत और शोहरत का करिश्मा – कुछ भी खरीद सकते हैं.  सच को झूट और झूट को सच में बदलने में इन्हे कोई दिक्कत नहीं होती.

सच के सौदागर होकर यह भूल जाते हैं कि सच के सात अपनि आत्मा भी बेचते हैं.

उसके बाद इस ख़याल में जीते हैं कि उन्होने जो किया ठीक किया.  सिर्फ औरों को ही नहीं, इन्हे तो अपने आप को भी धोखा देना बुरा नहीं मानते.

इनके लिए झूट और फरेब कि ज़िन्दगो एक अजीब दास्तान हैं.  इस कहानी में ये किरदार निभाते हैं क्यों की ये असलियत से कतराते हैं.

जितनी दूर ये असलियत से भागते हैं उतनि ही नज़दीक अपने आप को धोखेपन में पाते हैं.

अपने आप से अलग होना ना मुमकिन होने पर भी, अपने गुरूर के वजय से ज़िन्दगी इनके लिए एक सज़ा हो जाती है .

हालां कि अपनी इस बिगड़ते हालत को छिपाने कि कोशिश में एक और मुसीबत पैदा कर लेते हैं.

जो झूट के सहारे जीते हैं, वह चैन से दुश्मनी मोल लेते हैं.

आखिर कब तक ये सिलसिला जारी रहेगा?

जब तक जान है और फिर उसके बाद इस दौर से छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है.

क्यों की ज़िन्दगी का सफर मौत के बाद भी खत्म नहीं होता.  पूरे हिसाब चुकाना और अपने किये का पछताना खुदरत का नियम है.

नियत कोटि हो तो आने वाला कल भी खोखला होता है.

अपने गुनाहों को किसी और के ज़रिये चुड़ाना पानी में दिखते अपने दर्पण को इंकार करने का समान होता है.

यही साबित होता है कि सब घटनावों में आत्मा हमेशा गवाह है और इनसान के लाख बहाने उसकेलिए ज़ंज़ीर  बनकर ज़िन्दगी बंदगी में बदल जाता हैं.

क्या डोंग रचाने से कोई और बन सकते हैं ? फिर इस कपट से बाज़ क्यों नहीं आते? दुनियां को गुमराह करने के चक्कर में खुद घूम हो जाते हैं. इस महौल में इनके टूटते मानसिक संतुलन दिखाई देता है. इस कश्मकश में फसकर इनके लिए अपनि किस्मत पर रोने के अलावा और कोई चारा नहीं होता.

शुरू से लेकर आखरी तक इनकी गलत फेमी यही कि शीश महल में रहनेवाले पत्थर फेंग्केर कायम रहेंगे.

काश ऐसा होता तो एतिहास कुछ और होता. किस्मत आज़मानेवाले यूहीं किस्मत के मारे नहीं होते.

किसी और को अपनि बदकिस्मेति सौंपकर उनकी खुशकिस्मेति चीनने वालों कि बीतर कि हालत पेश आता है.

इनमें इनसानियत कि परछाईं तो दूर शराफत कि महक भी नहीं मिलती.

बेहतर यही है कि अपनि तकदीर पर कुल्हाड़ी मारने के बजाई अपनि आत्मा कि आवाज़ सुनले और हकीकत मानलें.

ज़िन्दगी कि सबक एक लम्हें नहीं लम्बे अरसे तक याद दिलाता है. इसे ठुकराकर अपनि नई मंज़िल कि तलाश में निकलते मुसाफिर को मायूसी के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा जैसे कि रेगिस्तान में नख़लिस्तान यानि शाद्वल और बारिश के उम्मीद लेकर भटकनेवाले बिखर जाते हैं.

मृगतृष्णा – मन का आईना और इसमें खोना कर देता है मुश्किल वापस लौटना.

सभी को अमन!

शुक्रिया / धन्यवाद

पद्मिनी अरहंत

 

 

 

 

 

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